जेट इंजन कैसे काम करता है? | What is Jet Engine in Hindi

दोस्तों आप में से बहुत से लोगो ने जेट इंजन के बारे में सुना होगा लेकिन आप में से कुछ लोग ऐसे भी होंगे जिन्हें नही पता होगा कि जेट इंजन क्या होता है और कैसे काम करता है इसीलिए आइये आज इस आर्टिकल में हम आपको जेट इंजन से रिलेटेड पूरी इनफार्मेशन देते हैं जो लोग जेट इंजन के बारे में जानकारी चाहते है वो हमारे इस आर्टिकल को पूरा जरुर पढ़े.

जेट इंजन क्या होता है (What is Jet Engine in Hindi)

आज के समय में ज्यादातर पैसेंजर और मिलिट्री एयरक्रॉफ्ट गैस टरबाइन इंजन द्वारा चलते हैं जिन्हें जेट इंजन भी कहा जाता है जेट इंजिन न्यूटन्स लॉ मोशन के अनुसार काम करते है किसी चीज़ को एक्सीलेट करने के लिए जरूरी है कि उस पर एक्सीलेशन की दिशा में बल लगाया जाए और यह फोर्स प्राप्त करने के लिए एक दूसरी चीज़ का होना जरूरी है जिसे विपरीत दिशा में खींचा या धकेला जा सके. जेट इंजन बड़ी मात्रा में हवा को अंदर खींचकर बहुत फोर्स के साथ पीछे की ओर धकेलता है जिसके कारण हवा पीछे की दिशा में एक एक्सीलरेट होती है अब आपने इन दिशा के कारण इस एक्सीलरेशन को रजिस्ट करती है और इंजन पर आगे की दिशा में बराबर मात्रा का फोर्स लगाती है जिसके कारण इंजन आगे की तरफ बढ़ता है.

जेट इंजन का मुख्य काम आने वाली हवा में पीछे की दिशा में नेट एक्स्प्रेशन पैदा करना है जिससे जेट इंजन पर आगे की ओर रिएक्शन फोर्स लग सके. सभी टरबाइन इंजन लगभग एक ही तरह से काम करते हैं. जेट इंजन में कई घूमने वाले पार्ट्स होते हैं और अलग-अलग घूमने वाले पार्ट्स की अलग-अलग ऑप्टिमम रोटेटिंग स्पीड होती है अगर लो प्रेशर कंप्रेशर की रोटेटिंग स्पीड हाई प्रेशर कंप्रेशर से काफी कम हो तो इंजन ज्यादा है इफीशियेंटली काम करता है और फ्रंट फैन की ऑप्टिमम रोटेटिंग स्पीड उससे भी कम होती है

इसलिए हमारे लिए अच्छा रहेगा कि हम तीन स्पीड वाले सिस्टम का उपयोग करें जिसमें फ्रंट फैन, लो प्रेशर कंप्रेशर, और हाई प्रेशर कंप्रेशर, सभी अलग-अलग स्पीड से घूमें पर कॉम्प्लैक्सिटी से बचने के लिए ज्यादातर इंजन मैन्युफैक्चरर्स टू स्पीड वाले सिस्टम (जिसे टू स्पूल डिज़ाइन कहा जाता है) का प्रयोग करते हैं इस डिजाइन में फ्रंट फैन, लो प्रेशर कंप्रेशर और लो प्रेशर टरबाइन एक ही सॉफ्ट पर फिक्स्ड होते हैं इसलिए दोनों एक ही स्पीड से घूमते हैं जबकि हाई प्रेशर कंप्रेशर और हाई प्रेशर टरबाइन एक दूसरे सॉफ्ट पर फिक्स होते हैं जो कि अंदर से खोखला होता है और यह पहले वाले शाफ्ट के ऊपर कांसेटिकली फिट किया जाता है इस प्रकार अंदर वाला और बाहर वाला सॉफ्ट एक दूसरे को प्रभावित किए बिना अलग-अलग स्पीड से घूम सकते हैं.

आगे की तरफ लगा हुआ बड़ा पंखा टर्बोफैन का पहला हिस्सा होता है जो ज्यादा मात्रा में हवा को खींचकर इसकी स्पीड बढ़ा देता है ज्यादातर हवा जिससे बाईपास एयर कहा जाता है सीधे बाहर धकेल दी जाती है जिसके कारण थ्रस्ट पैदा होता है ज्यादातर आधुनिक जेट इंजन में यह पंखा ही अकेले 90% तक आगे धकेलने की शक्ति पैदा कर सकता है बाकी हवा कोर या इंजन के सेंटर की तरफ चली जाती है कोर में सबसे पहले एक एक्सियल फ्लो कंप्रेसर लगा होता है जो हवा को लगातार कम होते हुए एरिया में धकेलकर कंप्रेस कर देता है जिसके कारण हवा का प्रेशर और टेंपरेचर बढ़ जाता है कंप्रेसर में जैसे-जैसे हवा आगे की तरफ बढ़ती है.

प्लेट प्रत्येक सेट थोड़ा छोटा होता चला जाता है जो हवा को और भी कंप्रेस कर देता है लो प्रेशर कंप्रेशर के बाद हवा हाई प्रेशर कंप्रेशर में जाती है जो ज्यादा तेजी से घूमता है और हवा का प्रेशर और टेम्पेरचर और भी ज्यादा बढ़ा देता है एक्सियल फ्लो प्रेशर में कई स्टेजेस होते हैं घूमने वाले प्लेट जिन्हें रोटर प्लेट भी कहा जाता है और फिक्स प्लेट जिन्हें स्टेटर प्लेट कहा जाता है ये एक के बाद एक लगे होते हैं और मिलकर एक स्टेज कहलाते हैं रोटर प्लेट रोटर ड्रम पर लगे होते हैं और स्टेटर प्लेट आउटर केसिंग पर फिक्स्ड होते हैं प्लेट्स को इस तरह से बनाया जाता है जिससे हवा हमेशा प्लेट एंगल को फॉलो करते हुए इंटर हो.

रोटर और स्टेटर प्लेट दोनों का आकर इस तरह का होता है कि फ्लो की डायरेक्शन में एनुअल एरिया बढ़ता है और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि प्लेट एक्सियल डायरेक्शन की तरफ मुड़े होते हैं जब हमारे स्टेटर प्लेट से गुजरती है तो फ्लोर एरिया बढ़ने के कारण हवा धीमी हो जाती है और हवा की कुछ काइनेटिक एनर्जी प्रेशर एनर्जी में बदल जाती है इसी प्रकार जब हवा रोटर प्लेट से गुजरती है तो फ्लो एरिया बढ़ने के कारण प्लेट के रिलेटिव हवा की वैल्यूसिटी कम हो जाती है और इसलिए इसका प्रेशर बढ़ता है और रोटर प्लेट घूम भी रहे होते हैं यह साथ ही साथ हवा को एक एक्सीलेट भी कर देता है और इसलिए हवा ज्यादा ऐब्सलूट वैल्यूसिटी से बाहर निकलती है इसलिए रोटर प्लेट से गुज़रने के दौरान हवा की वैल्यूसिटी और प्रेशर दोनों बढ़ जाते हैं बढ़ी हुई वैल्यूसिटी के साथ यह हवा फिर से स्टेटर प्लेट से गुजरती है जो हवा को फिर से धीमा कर देता है

यही प्रोसेंस हर स्टेज में होता है और हर स्टेज में कुछ प्रेशर बढ़ जाता है इसके बाद यह कंप्रेस्ड हवा कम्बशन चैम्बर में जाती है कम्बशन चैम्बर में हवा में फ्यूल स्प्रे करने के लिए कई नोजल्स दिए जाते हैं. शुरुआत में इस साइकल के दौरान एयर फ्यूल के मिश्रण को स्पार्क प्लग द्वारा चलाया जाता है एक बार शुरू हो जाने के बाद आग खुद से लगातार लगी रहती है यह हाई प्रेशर और हाई टेम्प्रेचर जलती हुई गैस बड़ी तेजी के साथ टरबाइन ब्लेड्स से होकर गुजरती है जिसके कारण प्लेट्स घूमते है और एग्जॉस्ट गैस से एनर्जी टरबाइन को ट्रांसफर होती है

जिसके कारण इन गैसेस का प्रेशर और टेंपरेचर कम हो जाता है हाई प्रेशर टरबाइन के घूमने के कारण हाई प्रेशर कंप्रेशर घूमता है क्योंकि दोनों एक ही सॉफ्ट पर फिक्स होते हैं इसी प्रकार लो प्रेशर टरबाइन और फ्रंट फैन और लो प्रेशर कंप्रेशर को घुमाता है एग्ज़ॉस्ट गैसेस बाहर निकलने से पहले नोजल से होकर गुजरती है जहाँ एग्ज़ॉस्ट गैसेस की बची हुई एनर्जी को नोजल के द्वारा हाइ स्पीड जेट में बदल दिया जाता है जिसके कारण इंजन पर आगे की तरफ थ्रस्ट लगता है.

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