रोल्स रॉयस की 8 बातें जो आप नही जानते होंगे?

रोल्स रॉयस की 8 बातें जो आप नही जानते होंगे?

क्या आपको पता है कि रोल्स रॉयस गाड़ी में ऐसा क्या होता है जो इसे इतना खास बनती है मार्केट में कई सारी महँगी-महँगी गाड़ियाँ है लेकिन रोल्स रॉयस की बात ही एकदम अलग है क्युकी जब ये सड़क पर चलती है तो लोग इसे देखने लगते हैं, तो आइये हम आपको इस रोल्स रॉयस गाड़ी के बारे में बताते हैं

हेनरी रॉयस जो एक इंजीनियर थे और चार्ल्स रोल्स जो उस समय मोटर कार के डीलर्शिप के ऑनर थे इन दोनों लोगों ने मिलकर 1904 में रोल्स रॉयस कम्पनी को बनाया, इस कंपनी को दोनों लोगों ने मिलकर बनाया था. जिसके बाद 1980 में ब्रिटिश डिफेन्स कंपनी व्हीकर्स ने रोल्स रॉयस कंपनी को खरीद लिया, हालाँकि 1998 में फॉक्सबेगिन (Foxbegin) और बीएमडब्ल्यू रोल्स रॉयस कंपनी को खरीदना चाहते हैं इससे पहली बीएमडब्ल्यू रोल्स रॉयस कंपनी को इंजन और बाकि की चीजें सप्लाई भी करता था.

1998 से लेकर 2003 तक फॉक्सबेगिन और बीएमडब्ल्यू के बीच रोल्स रॉयस के मालिकाना हक़ को लेकर काफी विवाद हुआ, फिर इन दोनों ने आपस में समझौता कर लिया. जिसके बाद 2003 से बीएमडब्ल्यू के पास रोल्स रॉयस की कम्पलीट ओनरशिप आ गयी और उसके बाद बीएमडब्ल्यू कंपनी ने इंग्लैण्ड के गुटबुट में रोल्स रॉयस का हेड क्वार्टर खोला, और 2003 में अपने पहले प्रोडक्ट फैंटम को लांच किया, आज भी आप जितने भी मॉडर्न रोल्स रॉयस कंपनी की गाड़ियाँ देख रहे हैं वो सब इसी के अंतर्गत आती है.

लेकिन अगर हम इसके इतिहास काल की बात करें तो 1904 में हेनरी और रोल्स ने रोल्स रॉयस कंपनी तो बना ली और अपने पहले प्रोडक्ट टेन एचपी को लांच भी कर दिया, लेकिन अभी भी लोगों को ये नही पता था कि ये कंपनी कैसी है और यहाँ पर बनाई जाने वाली गाड़ियाँ विश्वसनीय है कि नही, लेकिन जब 1960 में रोल्स रॉयस कंपनी ने सिल्वर गोस्ट को लांच किया तब ये गाड़ी बहुत ही बेहतर निकली और इसे दुनिया के सबसे बेहतरीन कार के ख़िताब से नवाजा गया. क्युकी उस समय इस गाड़ी ने लंदन से ग्लासगो के बीच 27 बार चक्कर लगाया, इसी के बाद से इस गाड़ी पर लोगों का विश्वास बन गया. आज तक जितनी भी रोल्स रॉयस गाड़ियाँ बनाई गयी है उनमे से 75% गाडियां अभी भी सड़कों पर चलती है और उनमे कोई खराबी नही है.

आखिर इस गाड़ी में ऐसा क्या होता है कि इसकी कीमत करोड़ो में होती है?

इस गाड़ी में बहुत सी चीजें ऐसी है जो इसे बाकि गाड़ियों से अलग बनाती हैं इनमें से सबसे ज्यादा इंटरेस्टिंग बात है कि रोल्स रॉयस कंपनी में बनने वाली सभी गाड़ियाँ हाथों से बनाई गयी है जबकि आज के समय में मैन्युफैक्चरिंग कंपनी हर गाड़ी बनाने के लिए मशीनों का इस्तेमाल करती है जिससे कम समय में ज्यादा गाड़ियाँ बनाई जा सकें.  जबकि रोल्स रॉयस में सिर्फ 4 मशीनें ही है वो भी सिर्फ कामों के लिए यूज की जाती है लेकिन बाकि के कामों को हाथों से किया जाता है यहाँ तक कि गाड़ी के इंजन को भी हाथों से ही बनाया जाता है.

इस गाड़ी को बनाने में सभी वर्कर्स का काम अलग-अलग होता है जो आपने काम को एकदम परफेक्ट तरीके से करता है जिससे जरा सी भी कोई गलती न हो. रोल्स रॉयस गाड़ियों में उपयोग की जाने वाली लेदर का पहले टेस्ट किया जाता है फिर उसका यूज होता है. इन गाड़ियों को आप अपने हिसाब से कॉस्टोमाइज भी करवा सकते हैं मतलब कि ये गाड़ी पहले से आर्डर देकर बनवाई जाती है इसे बनवाने के लिए लोग अपनी पसंद का कलर वगैरह चुनते हैं. अगर कोई व्यक्ति इस गाड़ी को खरीदने के लिए इतने ज्यादा रूपये खर्च करेगा तो वो अपनी पसंद की गाड़ी तो बनवायेगा ही, इसीलिए ये गाड़ी लोगों की पसंद बताते है.

रोल्स रॉयस गाड़ी में आपको बेहतरीन फीचर्स के साथ-साथ बेहतरीन क्वालिटी और कम्फर्ट भी देखने को मिलेगा, इस गाड़ी से भारत का एक पुराना रिश्ता भी है, असल में, जब अलवर के राजा जयसिंह लन्दन में अपना सादा जीवन बिता रहे थे तभी वो साधारण कपड़ो में रोल्स रॉयस में स्वरूम में पहुंच गये और वहां पर सेल्स मैन ने उनके कपड़े देखकर उन्हें स्वरूम से बाहर निकाल दिया,

अपनी बेजती (Rolls royce car facts in hindi) का बदला लेने के लिए उस समय तो राजा जयसिंह ने कुछ नही कहा लेकिन इसके बाद वो अपने राजा की वेशभूषा में आये और उसी समय उसी स्वरूम में उन्होंने नगद पैसे देकर 7 गाड़ियाँ खरीद ली थी, और उन सातों गाड़ियों को भारत ले गये और उन्ही से यहाँ का कचरा उठवाते थे जिससे रोल्स रॉयस की बहुत बेजती हुई और उन्होंने राजा जयसिंह से माफी मांगी तब जाकर राजा जयसिंह ने इन शानदार गाड़ियों से कचरा उठवाना बंद किया और इससे उनका बदला भी पूरा हो गया.

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