समुन्द्र में इन्टरनेट की तारे कैसे बिछाई जाती है?

समुन्द्र में इन्टरनेट की तारे कैसे बिछाई जाती है?

आज के समय में हम सभी के लिए इन्टरनेट बहुत जरुरी हो गया है. इन्टरनेट आज पूरी ग्लोबल इकॉनमी का आधार बन चुका है, लेकिन इस इन्टरनेट की सबसे अनोखी बात ये है कि ये आप तक हज़ारो, लाखो किलोमीटर तक का सफ़र तय करके पहुँचता है.

आखिर इन्टरनेट को कैसे आप तक पहुँचाया जाता है.

आपने ऑप्टिकल फाइबर केबल का नाम तो सुना ही होगा, ये वही केबल है जिसकी मदद से आप सभी लोग हाई स्पीड इन्टरनेट का आनंद ले रहे है लेकिन अगर ये ऑप्टिकल फाइबर केबल न होता तो शायद 4G और 5G इन्टरनेट स्पीड के सपने सिर्फ सपने ही रह जाते, लेकिन जब एक देश से दूसरे देश तक इस केबल को पहुंचाने की बात की जाये, तो काम कुछ ज्यादा ही मुश्किल हो जाता है. इन्टरनेट को एक देश से दूसरे देश तक लाखो किलोमीटर तक पहुँचाने के लिए इस केबल को बिछाया जाता है.

लाखो किलोमीटर का सफ़र तय करके ये केबल एक देश से दूसरे देश तक पहुँचते है. इसके बाद इन्टरनेट सर्विस प्रोवाइडर इस केबल के जरियें अपने ग्राहकों को इन्टरनेट पहुँचाने का काम करते है लेकिन जब बात भारत की आती है तो हमारे भारत के आस-पास सिर्फ समुन्द्र ही समुन्द्र है, जरा सोच कर देखियें कि आखिर ये केबल समुन्द्र को लाँघ कर कैसे आपके देश तक पहुंचते है, हमारे देश तक पहुंचते है.

इस केबल को बिछाने के लिए बिलकुल खास तरह की शिप को मॉडिफाई किया जाता है, ये ऐसी शिप होती है जिसका सिर्फ एक ही काम होता है समुन्द्र में हजारो ,लाखो किलोमीटर तक इस ऑप्टिक फाइबर केबल को बिछाना. आज के समय स्कागेर्रक, सी.एस.सॉवरेन कुछ ऐसे शिप है जो ऑप्टिकल केबल को समुन्द्र के अन्दर बिछाने का काम करती है.

इस शिप की खास बात ये होती है कि ये एक ही बार में 2000 किलोमीटर तक का केबल अपने साथ लेकर ट्रेवल कर सकती है और इन शिप की वजह से समुन्द्र के अन्दर केबल बिछाना बहुत ही आसान हो गया है, और इसकी रफ्तार सुनकर तो आप भी हैरान हो जायेंगे, एक ही दिन में ये करीब 100 से 150 किलोमीटर तक का केबल बिछा देती है और कई बार ये 200 किलोमीटर तक का भी पहुंच जाता है, बस इनकी इसी स्पीड के कारण आज आप तक हाई स्पीड इन्टरनेट बड़ी आसानी से पहुंच गया है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि समुंद्र की इतनी ज्यादा गहराई में ये ज्यादा समय तक सुरक्षित कैसे रहती होंगी,

इस तरह की ऑप्टिकल फाइबर केबल को लम्बे समय तक समुन्द्र के अन्दर के टिकने के स्पेशल तरह से डिजाईन किया जाता है, ऑप्टिकल फाइबर के ऊपर कॉपर, मेटल, और रबर की कई लेयर चढ़ाई जाती है उसके बाद ही इन्हे समुन्द्र के नीचे बिछाने का काम किया जाता है, इसकी वजह से इसे सबमरीन केबल कहा जाने लगा है, लेकिन इस केबल को बिछाने और बनाने में काफी खर्च आता है, एक प्रोजेक्ट में करीब 100 मिलियन से 500 मिलियन यूएस डॉलर तक का खर्च आ जाता है.

केबल को समुन्द्र के अंदर कैसे बिछाया जाता है?

समुन्द्र तट से थोड़ी दूरी पर एक शिप को खड़ा किया जाता है ये वही शिप है जो केबल बिछाने का काम करता है. शिप में केबल को लोड करने के लिए समुन्द्र तट से शिप तक केबल पहुंचाई जाती है ये काम पूरी तरह से मैन्युअली किया जाता है क्युकी इतना बड़ा जहाज समुन्द्र तट के करीब नही आ सकता, नही तो ये पूरी तरह से फंस सकता है इस केबल को शिप में लोड करने के लिए केबल के एक सिरे को शिप में लगे रोलिंग मशीन में बांधा जाता है और दूसरा सिरा समुन्द्र तट पर होता है जो केबल को रिलीज़ करने का काम करता है.

कुछ ही समय में शिप में लगी रोलिंग मशीन 2000 किलोमीटर तक की लम्बी केबल को रोल करके लोड कर लेती है और अब ये शिप समुन्द्र के अन्दर केबल बिछाने के लिये बिलकुल तैयार है, लेकिन अभी और भी बहुत काम बाकी है. केबल को बिछाने से पहले ये तय किया जाता है कि इस केबल को कौन से रूट पर बिछाया जायेगा, अगर कोई ऐसा रूट सामने आता है जहाँ पर वहाँ की लोकल अथॉरिटी से परमिशन लेनी पडेगी तो परमिशन लिया जाता है.

इस पूरे प्रोसेस को जियोलॉजिस्ट, ओसानोग्राफर की पूरी टीम मिलकर तैयार करती है इसके बाद पूरे रूट का सर्वे किया जाता है और देखा जाता है कि कहाँ-कहाँ पर दिक्कत आ सकती है. समुन्द्र के अन्दर कई बार पहाड़ भी होते है इसलिए उन पहाड़ों से हटाकर केबल को बिछाने का काम किया जाता है.

अब इन केबल्स को समुन्द्र के अन्दर बिछाने का काम होता है लेकिन इसे बिछाने से पहले इस बात का भी ध्यान दिया जाता है कि ये कोई प्रोटेक्टेड एरिया तो नही, क्युकी अगर कोई शिप प्रोटेक्टेड एरिया में बिना परमिशन के केबल बिछाने का काम कर देता है तो इसके लिए इन्हे 1 लाख यूएस डॉलर का फाइन भी देना पड़ सकता है फिर रूट के अनुसार शिप को ले जाया जाता है. शिप को इस तरह से डिजाईन किया जाता है कि इसके एक तरफ की  मशीन से समुन्द्र में गढ़ा खोदने तथा दूसरे तरफ के मशीन से केबल बिछाया जा सके. इन शिप के द्वारा समुन्द्र के अन्दर गड्डा किया जाता है और फिर उनमे ये केबल्स को बिछाई जाती है जिससे केबल्स सुरक्षित रहे.

अगर (Samudra me internet ki taar kaise bichhai jaati hai) इसे ऐसे ही सतह पर बीछा दिया गया तो कोई भी बड़ी सी व्हेल या सार्क जैसी मछली बहुत ही आसानी से काट सकती है जिसके बाद इसकी रिपेयरिंग करना इतना आसान नही होता है. कई बार इन केबल्स को बिछाने के लिए गोताखोरों की जरुरत पडती है ताकि रूट सही तरीके से फॉलो किया जा सके. इन गोताखोरों के पास एक जी.पी.एस सिस्टम होता है जिससे लगातार शिप में लगे सिस्टम ट्रैक करते रहते है वही केबल्स बिछाने के बाद इस शिप में लगी दूसरी मशीन इन गड्डों को बंद करने का काम करती है इनकी लाइफ ज्यादा से ज्यादा 10 साल तक की होती है |

लेकिन (Samudra me internet ki taar kaise bichhai jaati hai) बीच-बीच में कई बार मछलियाँ ,और समुन्द्र के अन्दर रहने वाले बड़े-बड़े जीव-जंतु इस केबल को काट देते है और कई बार कुछ ऐसी घटना घटित हो जाती है जिसकी वजह से केबल कट जाते है.  

Image Credit: Shutterstock

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