क्यों आ रही है पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी? | What is economic recession in Hindi

आइये आज इस आर्टिकल में हम आपको बताते है कि पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी बढ़ती क्यों जा रही है इसका कारण क्या है क्युकी आप में से बहुत से लोग सोचते होंगे कि हमारे देश में आर्थिक मंदी इतना कम क्यु होती जा रही है आखिर इसका क्या कारण हो सकता है तो ऐसे कैंडिडेट हमारे इस आर्टिकल को पूरा जरुर पढ़ें.

आर्थिक मंदी क्या होती है? (What is economic recession in Hindi)

किसी भी देश का विकास उस देश की अर्थव्यवस्था पर निर्भर करता है इसलिए आप लगातार वाले गिरावट आर्थिक मंदी का आ जाता है ऐसे में डेवलप कन्ट्रीज के द्वारा किया जाने वाला आयात और निर्यात पर अचानक बढ़ाना और घटाना आर्थिक मंदी की मुख पहचान है जिसका प्रभाव अन्य देशो पर भी पड़ता है आर्थिक मंदी में चीजों की खपत कम हो जाती है और आगे बनने वाले माल की बिक्री नही हो पाती है जिसका असर दुनिया के हर छोटे-छोटे बड़े व्यक्ति की आर्थिक स्थिति पर पड़ता है. आर्थिक मंदी का सबसे खरब समय तब आता है जब किसी देश की जीडीपी में 10 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आ जाती है प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1930 के दशक सबसे भयानक महा मंदी आई थी जिसे द ग्रेट डिप्रेशन कहा गया था.

आखिर क्यों आ रही है पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी

दुनिया के सबसे अमीर आदमी एलन मस्क को भी अब ये सोचकर डर लग रहा है कि आने वाले समय में आर्थिक मंदी कितना बुरा असर डालेगी, दुनिया खासकर अमेरिका जैसे विकसित देश मंदी की कगार पर खड़े है क्युकी कई ऐसे फैक्टर्स है जिससे ऐसा लग रहा है कि एक बार फिर से ग्लोबल इकॉनमी का आर्थिक मंदी की चपेट में आना तय हो गया है.

आर्थिक महा मंदी का सबसे बड़ा कारण कोरोना महामारी है पूरी दुनिया में 2019 से यह महामारी चल रही है इस महामारी ने दुनिया भर में हेल्थ क्राइसेस से ज्यादा इकॉनमिक क्राइसेस पैदा किये है अभी फिर से चीन महामारी के नये लेवल से जूझ रहा है शंघाई जैसे इंडस्ट्रियल हाउस कड़े  लॉकडाउन से गुजर रहे है इसकी वजह से कई कंपनियों के प्लान फिर से बंद हो गये है अब ऐसे में पहले से ही सप्लाई चेन की दिक्कतों का सामना करना है नई लहर ने सप्लाई साइड की समस्या को और बढ़ा दिया है इसके अलावा अगर अमेरिका की बात की जाये तो आप सभी को भी पता होगा कि इस महामारी ने अमेरिका में किस तरह की तबाही मचाई थी जिस कारण से अभी तक अमेरिका उससे बाहर नही आ पाया है लेकिन आप अगर दूसरे कारण की तरफ गौर करें तो रूस यूक्रेन युद्ध मतलब कि अब चल रहा रशिया यूक्रेन वार इसका और बड़ा कारण माना जाता है.

रूस और यूक्रेन फरवरी के आखिरी हफ्ते से युद्ध में फंसे हुए है काफी तनातनी और सैन्य तनाव के बाद रूस ने फरवरी के अंतिम दिनों में युक्रेन पर हमला कर दिया पहले कहा जा रहा था कि ये युद्ध ज्यादा दिनों तक नही चलेगा लेकिन महीनो बीतने के बाद भी युद्ध जारी है कोई रोके जाने के बाद भी इंतजार है इस युद्ध के कारण दुनिया भर में जरूरी क्मोरिटीस की समस्या सामने आई है रूस और यूक्रेन दोनों ही गेंहू और जौ जैसे कई अनाजों के बड़े निर्यात को इस युद्ध ने काफी ज्यादा प्रभावित किया है अभी हालात ऐसे हो गये है कि कई देश के सामने फ़ूड प्राईसेस की स्थिति है पड़ोसी देश श्री लंका इन्ही संकटों का सामना कर रहा है और पाकिस्तान और नेपाल में भी ऐसी ही स्थिति है.

दशकों की सबसे ज्यादा महंगाई इस समय पूरी दुनिया में देखने को मिल रही है अगर भारत की बात करें तो बीते महीने में थोक महंगाई और खुदरा महंगाई दोनों ही कई साल के हाई लेवल पर पहुँच चुकी है अप्रैल में सालों बाद थोक महंगाई 15 फीसदी के पार निकल गयी और नवम्बर 1998 के बाद सबसे ज्यादा हो गयी. खुदरा महँगाई पहले ही मई 2014 के बाद से सबसे हाइयेस्ट लेवल पर है अप्रैल में अमेरिका में खुदरा महंगाई कुछ होकर 8.3% पर आई लेकिन यह अभी भी कई दशकों के हाई लेवल पर हैं इससे पहले मार्च में अमेरिका की महंगाई 8.5% रही थी जो बीते 41 साल में सबसे ज्यादा थी महंगाई के कारण ही अगर देखा जाये तो भारत में लगभग हर चीज़ के दाम में इतना उछाल आ चुका है कि अगर आप कुछ महीनों के बाद बाज़ार जाकर कुछ  खरीदते है तो आप भी एक बार जरुर कहेंगे कि इतना महंगा.

महंगाई को कंट्रोल करने के लिए दुनिया भर के सेंट्रल बैंक लगातार ब्याज दे रहे है मतलब कि लोन पर इंटरेस्ट रेट बढ़ा रहे है अगर भारत की बात करें तो रिज़र्व बैंक ने इसी महीने में बैठक की और रेपोरेट को 0.40 फीसदी बढ़ा दिया है रेपोरेट का मतलब होता है रिज़र्व बैंक द्वारा बाकि के बैंकों को दिए जाने वाले कर्ज की दर (इंटरेस्ट भी कह सकते है) बाद में बैंक इस चार्ज से अपने कस्टमर को लोन देता है अमेरिका में फेडरल रिज़र्व भी आक्रामक तरीके से ब्याज दरें बढ़ा रहा है फेडरल बैंक के चेयर मैन Jerome पावेल ने मंगलवार को कहा था कि जब तक महंगाई काबू में नहीं आ जाती रही है तब तक ब्याज दरें बढ़ती रहेंगी और इससे ही आर्थिक मंदी बढ़ती है पिछले कुछ महीनों में कच्चे तेल के दाम में लगातार बढ़ते जा रहे है यह लगातार 100 प्रति बैरल पर बना हुआ कच्चा तेल 1 फीसदी 113.6 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच गया है इसी तरह वेस्ट टैक्सेज इंटरमीडियेट 1.4 फीसदी से चढ़कर 114.02 डॉलर प्रति बैरल पर पहुँच गया है क्रूड तेल के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक रूस के ऊपर अमेरिका और बाकि के युरूपीय देशों ने कई संक्शन्स लगा दिये है अप्रैल में रूस के क्रूड आयल का प्रोडक्शन 9% कम हुआ है पेट्रोलियम का प्रोडक्शन करने वाले देश भी तय मानक से कम प्रोडक्शन कर रहे है महंगे क्रूड आयल से भारत और चीन जैसे उन विकासशील देशो का नुकसान हो रहा है जो कच्चे तेल के आयात पर निर्भर है ऐसे में सरकार पेट्रोल के दामों को काबू कैसे कर सकती है.

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