क्यों ये देश मिलिट्री का सारा सामान समुंद्र में फेंक रहा है?

क्यों ये देश मिलिट्री का सारा सामान समुंद्र में फेंक रहा है?

पृथ्वी के 70% भाग पर पानी है और पानी में बहुत तरह के जीव पाए जाते हैं लेकिन आज के समय में इंसानों में समुंद्रों को कमर्शियल करना शुरू कर दिया है जिसके कारण मरीन इकोसिस्टम प्रभावित हो रहा है जिसके कारण बहुत सी मछलियाँ और समुंद्र में रहने वाले जीव खत्म हो गये है.

2010 में थाईलैंड की महारानी ने अपने जन्मदिन पर 25 रिटायर्ड मिलिट्री टैंक और दूसरे सामान को समुंद्र में डाला गया था क्युकी ज्यादातर समुंद्री जीव कोरल रीफ इकोसिस्टम में रहना पसंद करते हैं इसे मोंगे की चट्टान भी कहते है ये चट्टानें समुंद्र में पाई जाती है. ये प्रवालों द्वारा छोड़े गये कैल्शियम कार्बोनेट से बनती है. ये प्रवालों का घर होती है और रंग-बिरंगी होती है. प्रवाल समुंद्र में पाये जाने वाले छोटे-छोटे जीव होते है जिनके चारों तरफ कैल्शियम कार्बोनेट की परत पाई जाती है इनके मरने पर ये चट्टानों के रूप में इकठ्ठा हो जाते हैं.

इस कोरल रीफ पर समुंद्र में पाए जाने वाले जीवों का 25% जीवन निर्भर करता है इस कोरल रीफ में मछलियाँ की लगभग 15 सौ प्रजातियाँ और 411 तरह से सख्त मोंगे 134 तरह की शार्क और रेम मछलियाँ पाई जाती है. लेकिन इंसानों के कारण मछलियों का घर ख़त्म होता जा रहा है इस समस्या को हल करने के लिए कई प्रोग्राम चलाये जा रहे है जिसके अंतर्गत समुंद्र में पुराने टैंक और दूसरे पुराने सामानों को डाला जा रहा है जिससे मछलियों को रहने के लिए घर मिल सके और अन्य जीव भी अच्छे से रह सके.

श्रीलंकन सरकार ने भी अपने दो नेवल शिप को समुंद्र में डाला है 17 मई 2006 को यूएसएस और स्कैनी फर्स्ट नेवल शिप को समुंद्र में डाला गया था. आज के समय में ये दुनिया का सबसे बड़ा रीफ है और स्कैनी मैक्सिको की खाड़ी में 215 फिट की गहराई में मौजूद है और आज इसमें बहुत से समुंद्री जीव घर बनाकर रहते हैं. डीकोमिसेंट ऑयल और गैस के प्लेटफ़ॉर्म्स को ट्रांसफॉर्म करके उन्हें आर्टिफीसियल रीफ में बदला जाता है और सही आकार देकर समुंद्र में फेंक दिया जाता है. ये मछलियों के खाने और रहने के लिए बहुत ही अच्छा है. आर्टिफीसियल रीफ को इस तरह से बनाया जाता है कि इसमें होल्स और स्पेस मौजूद रहे और मछलियाँ और अन्य जीव इसमें आसानी से रह सकें.

आज के समय में नई-नई टेक्नोलॉजी का यूज करके सुन्दर, अलग-अलग आकार से और काफी स्पेस वाले रीफ बनाये जाते हैं. 2012 में क्लीन फाउंडेशन अटलांटिक रीफ बॉल प्रोग्राम को लांच किया गया. इसका उद्देश्य अटलांटिक समुन्द्रों में आर्टिफीसियल रीफ को बनाना और उनकी मॉनिटरिंग करना. जिससे इस एरिया की मरीन लाइफ को बचाया जा सके.

समुंद्र में डाला गया ये सामान कभी-कभी मरीन इकोसिस्टम को नुकसान पहुंचा सकता है जैसे- फ्लोरिडा में बनाई गयी ऑसबॉन्ड रीफ. ये रीफ बनाने के लिए 2 मिलियन पुराने टायरों को समुंद्र में डाल दिया गया था कई सालों बाद देखा गया कि उस एरिया में एक भी मछली नही थी. क्युकी टायरों से निकलने वाले टॉक्सिक केमिकल के कारण उस पर कोई जीव अपना घर नही बना पा रहा था इसीलिए अब इन टायरों को समुंद्र से निकाला जा रहा है.

इन्सानों के कारण (kyu ye desh military ka saara saamaan samundra me phenk raha hai) मछलियों के प्राकृतिक घर ख़त्म हो रहे है मछुआरे ज्यादा मछलियाँ पकड़ने के लिए बड़े-बड़े रबड़ रोलर लगे नेट समुंद्र में डालते है जिससे वो ज्यादा मछलियाँ पकड़ लेते हैं लेकिन मछलियों के नेचुरल रीफ टूट जाते हैं. अब कुछ देशों में डीप फिशिंग पर रोक लगा दी है क्युकी एक रीफ एक बार टूट जाने पर दोबारा नही बनाई जा सकती है. ब्लास्ट फिशिंग पर भी रोक लगा दी गयी है क्युकी इससे समुन्द्रों में ब्लास्ट करने से रीफ नष्ट हो जाते हैं. इन्लीगल अन्डर वाटर माइनिंग और कोस्टर वाटर भी इसका मुख्य कारण माना जाता है.

Image Credit: Shutterstock

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