भारत में क्यों बढ़ रहे हैं दहेज के मामले | Why dowry cases are increasing in India in Hindi

भारत में दहेज सदियों से एक बहुत बड़ी परेशानी है आपको भी पता है कि आज के समय में दहेज़ की वजह से लोगो को बहुत ज्यादा परेशानीयों का सामना करना पड़ता है तो आइये आज इस आर्टिकल में हम आपको भारत में दहेज़ के बड़ते मामलों के बारे में जानकारी देते हैं.

भारत में क्यों बढ़ रहे हैं दहेज के मामले

दहेज़ अपने आप में एक सामाजिक दुष्कर्म तो है लेकिन इसके साथ-साथ ये कई तरह की और परेशानियों को भी बढ़ाता है बहुत से लोग आज भी लड़कियों को जन्म देने से कतराते हैं और बहुत से लोग लड़कियों की हत्या कर देते है इसके अलावा जो परिवार लड़कियों को पालते हैं वो इस दहेज के बोझ के कारण पहले से ही ज्यादा पैसा सेव करना शुरू कर देतेहै और अपने बजट को कम कर देते है जिस कारण से वो हेल्थ, एजुकेशन, और बाकी सेक्टर्स में कम पैसा खर्च करते हैं जब 1980 में सोने के दाम अचानक से बढ़ने लगे थे तब भारत में फीमेल मोर्टेलिटी गिरने लगी थी और साथ ही साथ डोमेस्टिक वायलेंस जैसे मामलों में भी काफी बढ़ने लगे थे. दहेज का लेन-देन सिर्फ भारत में ही नही बल्कि यूरोपियन सोसाइटी में भी दहेज दिया जाता था शायद ये बात आपको पता हो कि अंग्रेजों को एक ब्रिटिश पोर्चिगल रॉयल वेडिंग में बॉम्बे भी दहेज नहीं दिया गया था लेकिन आप इन सोसाइटीज़ में दहेज बिल्कुल ख़त्म हो गया.

पहले के समय में दहेज़ इसलिए दिया जाता था क्योंकि हिंदू समाज में लड़कियों के पास अपने पिता की संपत्ति पर कोई हक नहीं होता था इसलिए फैमिली लड़की को संपत्ति के तौर पर दहेज दिया जाता था लेकिन आज के समय में दहेज लड़कियों के लिए नहीं बल्कि दुल्हे के लिए दिया जाता है क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर भारत में दहेज़ के मामले इतना क्यों बढ़ते जा रहे है सालों से कई डॉलर्स ने इसका जवाब तलाशने की कोशिश की है और इसके बारे में तीन थ्योरीज दी गई है

पहली संस्कृताइजेशन की थ्योरी थी इस थ्योरी के मुताबिक पहले सिर्फ अपर कास्ट सोसाइटीज़ में ही दहेज दिया जाता था और इसे एक शान समझा जाता था लेकिन धीरे-धीरे छोटी कास्ट में भी इस दहेज़ प्रथा को इसीलिए अपना लिया गया जिससे समाज में वो भी अपना पद ऊँचा कर सकें ये थ्योरी एम एन श्रीनिवास द्वारा दी गई थी लेकिन इस थ्योरी को कई लोगो ने क्रिटिसाइज भी किया लेकिन इस थ्योरि का क्रिटिसजम यह निकला कि अगर यह थ्योरी सच होती तो सिर्फ लोवर कास्ट सोसाइटीज में ही दहेज़ के मामले बढ़ते जबकि अपर क्लास में दहेज के मामलों में गिरावट आती है लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ है जहाँ 1930 में सिर्फ 40% शादियों में ही दहेज दिया जाता था अब सन् 2000 में लगभग 90% शादियों में दहेज़ दिया गया.

दूसरी थ्योरी इसे एक्सप्लेन करने की कोशिश करती है वो सिवान एंडरसन थ्योरी थी ये थ्योरी काफ्ट और कास्ट पॉलिटिक्स को सेंटर में रखते हुए अपनी बेटियों की शादी अपनी कास्ट से ऊंची कास्ट में करने को एक शान की तरह देखा जाता है क्योंकि पहले भारत में सिर्फ अपर कास्ट के लोग ग्रो कर पाते थे और उनके पास ज्यादा संसाधन होते थे इसलिए ज्यादातर दुल्हे इन्ही परिवारों में शादियां करना पसंद करते हैं लेकिन जैसे-जैसे लोअर कास्ट के लोगों ने इकॉनोमिक डेवलपमेंट की  और धीरे-धीरे वो मिडिल क्लास या अपर क्लास में आने लगे, तो उनके पास भी दहेज देने के लिए पैसा हो गया जिस कारण से वो भी इस मार्केट में कॉम्पटीट करने लगे और दहेज लोवर कास्ट के लोगो का अपर कास्ट सोसाइटीज में एंट्री पाने का  एक बड़ा फैक्टर बन गया. आज भी भारत में ज्यादातर लोग अपनी कास्ट में शादी करना ज्यादा पसंद करते है और कास्ट शादियों में एक बहुत मैटर करता है जिस कारण से भारत में बढ़ते दहेज के मामलों को यह पूरी तरह एक्सप्लेन नहीं कर सकती है.

तीसरी थ्योरी जो इसे एक्सप्लेन करती है उसे ग्रूम क्वालिटी थ्योरी कहते हैं 1930 से अब तक एजुकेशन की फील्ड में भारत में एक बहुत बड़ा इन्वेस्टमेंट हुआ है जिससे सबसे ज्यादा फायदा लड़कों को हुआ है फिर यही लड़के आगे चलकर अच्छी नौकरी भी पा जाते है जिस कारण से वो एक अच्छे मैच के रूप में लड़कियों के परिवारों को पसंद आते हैं लेकिन जैसे-जैसे लड़का ज्यादा एजुकेटेड और ज्यादा पैसे वाला हो जाता है वैसे ही उसके स्टैन्डर्ड बढ़ जाते हैं और लड़कियों के परिवारों को उतना ही ज्यादा दहेज़ देना पड़ता है

जैसे- एक आइएएस ऑफिसर को एक साधारण सरकारी कर्मचारी से ज्यादा दहेज़ मिलता था ये एनआरइज इसको भी दहेज के रूप में काफी पैसा दिया जाता है और ऐसा इसीलिए क्युकी सोशली लोग ज्यादा इन्फ्लुवेंशल माने जाते इसलिए लोगों के हिसाब से ही उनकी बेटियों के लिए ज्यादा सूटेबल दुल्हे है. आज भारत में बहुत कम औरतें घर से बाहर निकलकर काम करती है जिस वजह से एक पति के ऊपर ही अपनी पत्नी को पालने की जिम्मेदारी होती है और इस एक आर्ग्युमेंट का इस्तेमाल करते हुए वो लड़की के परिवार वालों से उनकी बेटी की जिम्मेदारी लेने के लिए ज्यादा दहेज़ की मांग करते हैं केरला और नॉर्थ ईस्ट जैसे स्टेट जहाँ पर महिलाएं ज्यादा इंडिपेंडेंट है वहाँ पर दहेज के मामले भी बहुत कम है.

आखिर इसका सोल्यूशन क्या है एक्स्पर्ट का मानना हैं कि लॉस (Laws) को स्ट्रिक्ट करना इसका सलूशन कभी नहीं हो पायेगा क्युकी भारत में अभी भी दहेज पर जो लॉ है वो काफी स्ट्रिक्ट है लेकिन इससे कोई भी सुधार नही हो रहा है लोगो का मानना हैं कि जैसे-जैसे फैमिली, गर्ल, चाइल्ड एजुकेशन में से ज्यादा इन्वेस्टमेंट करना शुरू करेंगे और लड़कियों को अपने पैरों पर खड़ा होने का मौका देगी तभी हो सकता है कि दहेज़ के मामले कुछ कम होते नजर आयें.

तो दोस्तों उम्मीद करते हैं कि दहेज़ के टॉपिक से जुड़ी हमारी ये जानकारी आपके लिए काफी यूजफुल होगी.

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